Sunday, 24 January 2016

tilchatta!!!




तिलचट्टा 

सारा जग जब उत्थल पुथल में 
चारो दिशाएं जब खलबल में 
तू तब भी खड़ा है मौन 
आखिर तू विचित्र है कौन 

काया तोह लगती नश्वर ही 
भाता न मुझको एक पल भी 
कहाँ को रहता क्या है रिश्ता 
जहाँ जाऊं बस दीखता रहता 

छोटे छोटे पैरो वालों 
भागे सरपट कैसे प्यारे
अगर कोई पीछे तेरे हो 
या तू पीछे किसी के भागे 

सुनता सब पर कान न दीखते
समझे लेकिन सारी बाते 
दो लम्बी सी सींगे ताने 
हिलती डुलती सब कुछ जाने 

सर्वनाश भी हो जाये तो 
मिटना तेरा संभव न हो 
गर्मी में छूटते पसीने 
बेपरवाह तू रहता जीने 

ठण्ड में कांपे हड्डियां जब 
देखूँ दौड़े इधर उधर अब 
महाविनाश भी सुना है मैंने 
तू तोह बच्च जायेगा उसमें 

ऐसा राज़ तोह मुझे बता दे
यम महाराज को तू गच्चा दे 
जहाँ भी चाहे तू छुप सकता 
जो चाहे वह रूप ले सकता 

चाहे किसी से न कतराऊँ 
तुझे देख मैं भागे जाऊँ 
छोटा लेकिन सरपट जाऊं 
              
                  - विक्रमादित्य


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