ज्वालामुखी के फूल
उस भय भरे पुरे भर वन में
चलता जाता था
नज़र दौडाई कांटो में. दिख गया
वोह ज्वालामुखी का फूल
तीखी गंध फैली चहूँ और
दशो तरफ लहरों मे फैले
ऐसा ज्वालामुखी का फूल
तन कोमल ..पंखुड़ियां अनेक
अपने अन्दर समाये ढेरों
रस का लावा था लबालब
वोह ज्वालामुखी का फूल
कांटो के वन मे अन्ध्हियारा
ऊंचे ऊंचे पेड़ों के बीच
फिर भी खिलखिला रहा था
हंसता ज्वालामुखी का फूल
तेज से उसके चमकीला था
पर अंधियारा रोकते रहता
अपनी हार को देख न चिंतित
वोह ज्वालामुखी का फूल
कांटो से कटाते उसको
कुच्च्ल्ने की कोशिश भी उसको
कभी पटक उस चमकीले को
कभी हवाओं से चकित कर
लेकिन अपने मनोबल संग
दांत पीसता ..उनका दंभ भंग
वोह ज्वालामुखी का फूल
फिर एक आंधी भी थी आई
पेड सभी हिल मिला उठे
कांटे भी जो थे …झूमे से
गाते उस आंधी के लिये
वन्न मे फैला अंधियारा
घोर सन्नाटा पसरा
पर खुद को चमकीला रखे
वोह ज्वालामुखी का फूल
खाये थपेडे ऊपर नीचे
डाली तितर बितर सब खींचे
पर वोह अड़ा था ..चमक रहा था
अपनी विजय सुनिश्चित कर
उठाके मस्तक ..खिल मिश्रित वर
वन भी जो जननी थी उसकी
उससे विलीन न कर पाई
सभी साफ़ था…व्हो अकेला
बहुत समय तक रहा खिलखिला
फिर कुच्छ समय बाद देखा तोह
नज़र दौडाई दिखे अनगिनत
चमकते व्हो ज्वालामुखी के फूल
- विक्रमादित्य
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