Monday, 1 February 2016

aey pacchi main bhee teri tarah




ऊंचा उठता उड़ता जाऊं  एय पंछी मैं भी तेरी तरह
आजाद इधर से उधर ... सारा सर मुड़ता जुड़ता पवन प्रवाह
तेरे जो पर अब मुझमे भी ...चल फड फडा फड मस्ती मैं
आजा अब तोह लग जाये होड़ ...चलते है धरा को छोड़ छोड़
सरपट सर्राट सा अब ऊपर .....गोते लगायेंगे अब जीभर
मैं जानू परिंदे चल मैं तू...इस बार यार पूरा यह नभ
हर समा के संग मन की सुनकर ..अब चल रे दोस्त अभी और अब
चलते गाते ...गुन गुन ...धुन धुन ...तू मुझे सुना ..तू मेरी सुन
तेरे पंखों को तू फैला ..मैं संग तेरे मन का विरला
तेरी चहक चै चै का राग ...ऊंचा ऊंचा ...उड़ता  ऊंचा
मेरे भी पर फिर मै बिछा बस तू और मै जायेंगे छा
उस पल निश्चल हम सम रमकर ....और आँखे अपनी धरती पर
कितनी सुंदर अपनी माँ है ....यह पवन ..झरा..झरा ...झर झर

                                                      - विक्रमादित्य

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